Jabalpur Cantt News : फिर जागी कैंट बोर्ड चुनाव की आश, कोर्ट ने सरकार को भेजा नोटिस
आर्य समय संवाददाता,जबलपुर। कैंट बोर्ड मेबर्स चुनाव होने की संभावनाएं बढ़ती जा रही हैं। दरअसल, चुनाव को लेकर सुगबुगाहट रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा दिए गए एक आश्वासन के बाद शुरू हुई थी। इसी बीच सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट में लंबे समय से भंग बोर्ड को लेकर दाखिल हुई याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणी ने चुनाव होने की संभावनाओं को और बल दे दिया है। कोर्ट ने देशभर में कैंटोनमेंट बोर्ड के चुनाव नहीं कराए जाने पर केंद्र सरकार को फटकार लगाई।
दिल्ली हाईकोर्ट के सख्त रूख दर्शाता है कि चुनाव ज्यादा दिनों तक नहीं टाले जा सकते हैं। इसी तरह की एक याचिका जबलपुर हाईकोर्ट में भी लंबित है। उक्त याचिका पर भी जल्द सुनवाई हो सकती है। उल्लेखनीय है कि सोमवार को इस मामले पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि देश में 60 से ज्यादा कैंटोनमेंट बोर्ड हैं। ये बोर्ड कैंटोनमेंट के तौर पर तय इलाकों को निगम प्रशासन की तरह व्यवस्थित करता है।
इन बोर्ड के सदस्यों को चुनने के लिए पिछले चुनाव जनवरी 2015 में हुए थे, जिनका कार्यकाल 2020 में खत्म हो गया था। इसके बाद से अब तक चुनाव नहीं कराए गए हैं। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित संस्थानों को लोगों पर राज करना चाहिए। पीठ ने कहा कि व्यवहार सत्ता का गलत इस्तेमाल हो सकता है।
यह बताया गया कोर्ट में - कैंट अधिनियम, 2006 की धारा 12 में निर्वाचित सदस्यों सहित इन बोर्डों के गठन का प्रावधान है, लेकिन सरकार संविधान में बदलाव करने के लिए धारा 13 के तहत अधिसूचनाएं जारी कर रही है और चुनाव नहीं करा रही है। न्यायालय ने दर्ज किया कि धारा 13 के तहत, छावनी बोर्ड के गठन में परिवर्तन करने की शक्ति का प्रयोग केवल दो परिस्थितियों में किया जा सकता है।
सैन्य अभियान के कारण या कैंटोनमेंट के प्रशासनिक कार्य की वजह से। इसने पाया कि जब धारा 13 के तहत अधिसूचना जारी की जाती है, तो बोर्ड में कोई निर्वाचित सदस्य नहीं होता है और इसलिए, इन अधिसूचनाओं का निरंतर और बार-बार उपयोग किया जाता है यह उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को विफल करता है जिसके द्वारा छावनी, अधिनियम में परिकल्पना की गई है।
इसलिए, न्यायालय ने केंद्र सरकार के साथ-साथ रक्षा संपदा महानिदेशक (डीजीडीई) को नोटिस जारी किया और उन्हें निर्देश दिया कि वे अपने जवाब दाखिल कर बताएं कि धारा 13 के तहत अधिसूचनाओं को बार-बार जारी करने की अनुमति कैसे दी जा सकती है, जबकि कानून कहता है कि बोर्डों को लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित बोर्डों के माध्यम से काम करना चाहिए। इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि अब इस मामले को जनहित याचिका (पीआईएल) के रूप में माना जाएगा। इस मामले पर अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी।