आज मध्य प्रदेश में महाराणा प्रताप की जयंती पर राजकीय अवकाश घोषित किया गया है

आज मध्य प्रदेश में महाराणा प्रताप की जयंती पर राजकीय अवकाश घोषित किया गया है । लेकिन राज्य शासन मध्य प्रदेश के बुन्देलखंड क्षेत्र में जन्मे, बुन्देली भूमि की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर देने वाले छत्रसाल को भूल गया है । बुंदेलखंड के प्रारम्भिक शासक रुद्रप्रताप की पाँचवी पीढ़ी में महेवा के जंगलों में जन्में छत्रसाल के पिता चंपतराय तो शाहजहाँ की सेना से युद्ध करते वीरगति को प्राप्त हुए और युवा छत्रसाल के हिस्से में एक घोडा और चंद हथियार आए। इसी घोड़े पर सवार होकर छत्रसाल ने पाँच सैनिकों की मदद से बुंदेलखंड की स्वतंत्रता को जो अभियान शुरू किया उसका अंतिम युद्ध उन्होंने अस्सी वर्ष की आयु में सन 1730 में जैतपुर में मुहम्मद खान बंगस के साथ लड़ा । इस लंबी लड़ाई में उन्हें एहसास हो चला कि धीरे धीरे खत्म हो रहे संसाधनों से बंगस को परास्त कर पाना बुंदेलों के बस में नहीं है और उन्होंने बाजीराव पेशवा से मदद लेने का निश्चय किया। पेशवा को छत्रसाल ने संदेश भेजा ‘जो बीती गजराय पर , सो बीती अब आय । बाजी जात बुन्देल की , राखों बाजीराय । ।‘ और पेशवा तत्काल बुंदेलखंड आए भीषण युद्ध हुआ बंगस पराजित हुआ। लेकिन छत्रसाल को प्राप्त यह विजयश्री बहुत बड़ा मूल्य चुका कर मिली –उनका ‘इत जमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टौंस , छत्रसाल से लड़न की रही ना काहू हौंस’ तक फैला अधिकृत विशाल राज्य तीन हिस्से में बट गया। बाजीराव को महाराजा ने अपना तीसरा पुत्र माना । कहते हैं कि बंगस को पराजित करने के बाद राज दरबार लगा, राज नर्तकी मस्तानी के नृत्य का आयोजन हुआ और उस दरबार में जब बाजीराव पधारे तो उन्होंने महाराजा छत्रसाल की भरी सभा में तेरह रानियों से उत्पन्न उनके बावन पुत्रों के मध्य अपने बैठने का स्थान पूँछा । महाराजा छत्रसाल ने बहुत ही कूटनीतिक जवाब दिया- मेरे बड़े पुत्र युवराज हिरदे शाह , मझले पुत्र कुँवर जगतराज के बाद आप तीसरे पुत्र हुए , यथोचित स्थान पर पधारिए। महाराजा छत्रसाल की एक और कूटनीति के तहत मस्तानी ने अपने सौन्दर्य और नृत्य से बाजीराव का मन मोह लिया और अंतत: वह पुणे निवासिनी बन बाजीराव के पुत्र शमशेर बहादुर की जननी बनी । ऐसा कर छत्रसाल अपने राज्य का बटवारा टालने में तो सफल हुए पर उनकी मृत्यु के बाद बाजीराव ने युद्ध में मदद की एवज सागर, हटा, झांसी, कालपी, बांदा का क्षेत्र जिसकी तब आय तीस लाख रुपये थी हासिल कर ही लिया । बंगस छत्रसाल युद्ध की बड़ी कीमत बुंदेलखंड ने चुकाई । मराठे जब यहाँ आए तो वे छत्रसाल का पितातुल्य स्नेह भूल गए । भाईचारे की जगह उन्होंने छत्रसाल के बावन पुत्रों और अनेक पौत्रों को आपस में लड़वाया और महाराजा छत्रसाल के पराक्रम से अर्जित विशाल बुंदेला प्रदेश को छोटी-छोटी रियासतों में बाँट दिया । मराठों के आतंक से घबराए बुंदेलों को उन्हें भगाने का मौका मिला अंग्रेजों के बुंदेलखंड आगमन के बाद। बसई की संधि से मराठे पहले ही कमजोर हो चुके थे । और 1857 के युद्ध में झांसी का साथ न देकर बुंदेलों ने बची खुची मराठी ताकत को बुंदेलखंड से बिदा कर दिया । छत्रसाल केवल अच्छे योद्धा भर नहीं थे। वे कुशल राजनीतिज्ञ, धर्म प्रेमी, प्रजा पालक, न्याय प्रिय राजा और कवि भी थे । पन्ना में स्वामी प्राण नाथ द्वारा स्थापित प्रणामी पंथ को आश्रय देने में वे तनिक भी नहीं हिचकिचाए और बुंदेलखंड के आराध्य देव जुगलकिशोर की प्रतिमा को ओरछा से पन्ना लाए । एक ओर वे प्रजा वत्सल शासक थे तो दूसरी ओर दुष्टों को उचित दंड देने से वे पीछे नहीं रहे । उनके इस गुण का परिचय हमें विभिन्न कवियों द्वारा रचित कुछ दोहों व कवित्त से मिलता है । राजी सब रैय्यत रहे , ताजी रहे सिपाय , छत्रसाल तो राज को बाल ना बाँकों जाए । महाराजा छत्रसाल ने इस स्वरचित कवित्त के द्वारा अपने सम्पूर्ण राजनीतिक कौशल का निचोड़ व्यक्त कर दिया ;- चाहो धन धाम भूमि भूषण भलाई भूरि , सुजत सहुरजुत रैयत को लालियौ । तोड़ादार घोड़ादार बीरन सो प्रीति करे, साहस सौं जीती जंग खेत तो ना चालियौ । । सालियौ उद्दंडनि कों, दंडिनी कों दीजौ दंड , करिकै घमंड घाव दीन पै ना घालियौ । बिनती छत्रसाल करैं होय जो नरेस देस , रै है न कलेस लेस जो मोरो कहो पालियौ ।। वे स्वयं अच्छे कवि थे वरन साहित्यकारों , कवियों का सम्मान भी करते थे । छत्र प्रकाश के रचियता गोरेलाल तिवारी या लाल कवि उनके दरबारी कवि थे और विभिन्न युद्धों में उनके रण कौशल के साक्षी थे । महाकवि भूषण ,छत्रपति शिवाजी के पौत्र साहू जी महाराज के दरबार से रुष्ट होकर पन्ना आ गए । पालकी में सवार महाकवि की अगवानी करते हुए महाराजा छत्रसाल ने पालकी का डंडा अपने कंधे पर रख लिया । भूषण यह देखकर गदगद हो गए और उनके मुख से छत्रसाल की प्रसंशा यो निकली :- राजत अखंड तेज , छाजत सुजसू बड़ों, गाजत गयंद दिग्गजन हिय साल को । जाहि के प्रताप सौं मलीन आफताब होत, ताप तजि दुजन करत बहु ख्याल को ।। साज सजि गज तुरि पैदर कतार दींने , भूषन भनत ऐसो दीन प्रतिपाल को । और राव राजा एक मन में न ल्याऊं अब , साहू को सराहौं के सराहौं छत्रसाल खों ।। छत्रसाल के इन्हीं गुणों के कारण बुंदेलखंड की आम जनता के मध्य उन्हें देवतुल्य स्थान प्राप्त हुआ- छत्रसाल महाबली करियों सबकी भली भली । वे बुंदेलखंड केसरी जैसी अनुपम उपाधि के अधिकारी हो सके । वास्तव में महाराजा छत्रसाल का बुंदेलखंड में वही स्थान है जो महाराणा प्रताप का राजस्थान में, शिवाजी का महाराष्ट्र में और गुरु गोविंद सिंह का पंजाब में है । बुंदेलखंड की माटी के गौरव इस महान योद्धा को जन्म जयंती पर शत शत नमन । (2 no khabr)

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