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पूजा के साथ पितरों से मांगी क्षमा

नर्मदा तटों पर भावुक नजारा, 15 दिन की मेहमानी कर पितर विदा

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sought forgiveness from ancestors

आर्य समय संवाददाता, जबलपुर। पूरे एक पखवारे परिवार में अपनों के साथ सूक्ष्म रूप से रह कर पितर आज विदाई ले रहे हैं। विदाई की बेला में नर्मदा तटों सहित घरों में भावुक माहौल रहा। पितृ तर्पण करने वाले जातकों ने पूजा-अर्चना के बाद पितरों से ये कह कर क्षमा मांगी, कि हमसे जो भी बना हमने आपके लिए किया, अब आप प्रस्थान कीजिए और अपना आशीष अपने परिवार पर बनाए रखिए। इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू हुआ था, जो आज 14 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है।
अमावस्या का विशेष महत्व-
 पितर की विदाई को ही सर्व पितृ अमावस्या कहते हैं। इसे आश्विन अमावस्या और पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस दिन ज्ञात, अज्ञात पितरों का श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण करते हैं। इससे पूरे परिवार पर पितरों का आशीर्वाद बना रहता है तथा सुख-समृद्धि आती है। आश्विन मास के कृष्ण अमावस्या तिथि को सर्व पितृ अमावस्या होता है।
रात 11 बजे समापन
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार सर्व पितृ अमावस्या की शुरूआत शुक्रवाररात 9 बजकर 50 मिनट से र्हु  और इसका समापन आज 14 अक्टूबर की रात 11 बजकर 24 मिनट पर होगा। विदाई का विशेष मूहूर्त 11 बजकर 44 मिनट से लेकर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। उल्लेखनीय है कि जब किसी इंसान की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल या कृष्ण पक्ष की किसी भी तारीख में हो तो पितृ पक्ष में उसी तारीख को श्राद्ध करने का रिवाज है।  कुछ लोगों को अपने पितरों के मृत्यु की सही तरीख के बारे में पता नहीं होता है। ऐसे में इन ज्ञात और अज्ञात पितरों का श्राद्ध ही सर्व पितृ अमावस्या के दिन किया जाता है।
पितर अनुष्ठानों की धूम-
 पितरों को तृप्त करने के लिए  आजश्राद्ध, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन, तर्पण आदि किया जा रहा है। ये अज्ञात पितर भी पितृ पक्ष के दौरान पृथ्वी लोक में तृप्त होने की इच्छा रखते हैं। यदि इन अज्ञात पितरों का श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान नहीं करते हैं तो वे पृथ्वी लोक से निराश होकर चले जाते हैं। इससे उनका श्राप मिलने से पितृ दोष लग जाता है। घर-परिवार में कई तरह की समस्याएं आने लगती हैं। ज्योतिषाचार्य अशांति निवारण के लिए  स्नान और तर्पण करने के बाद काले तिल, दही, सफेद फूल और सफेद वस्त्र किसी जरूरतमंद गरीब ब्राह्मण को दान का विधान बताते हैं। आज नर्मदा तटों पर पितृ विदाई के नजारे सुबह से ही देखे गए।

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