इनाम के बदले मिला तबादला

माना जा रहा है कि उन्हें जनप्रतिनिधियों की अनदेखी भारी पड़ी।

author-image
By aryasamay
uy

इनाम के बदले मिला तबादला

New Update

ऐसा माना जाता है कि इंदौर निगमायुक्त के रूप में जिस भी अधिकारी की नियुक्ति होती है, वे कम से कम तीन वर्ष तो यहां बने ही रहते हैं। लेकिन हर्षिका सिंह इस मामले में अपवाद रहीं। शहर के स्वच्छता का सातवां आसमान छूने के बाद माना जा रहा था कि वे सुरक्षित हो गई हैं और फिलहाल उनका ट्रांसफर नहीं होगा, लेकिन हुआ इसके उलट। पुरस्कार के बदले उन्हें तबादला थमा दिया गया। इसके पहले चाहे मनीष सिंह हों, आशीष सिंह हों या प्रतिभा पाल, सभी लंबे समय तक यहां बने रहे। आशीष सिंह के समय तो सरकार तक बदल गई, लेकिन उन्हें नहीं बदला गया। हर्षिका सिंह सिर्फ 11 महीने ही यहां रह सकीं। माना जा रहा है कि उन्हें जनप्रतिनिधियों की अनदेखी भारी पड़ी। जब तक प्रदेश में शिवराज सरकार थी उनका सिक्का चलता रहा, लेकिन सरकार बदलते ही यह सिक्का चलन से बाहर हो गया।नगर सरकार को घेरने के नेता प्रतिपक्ष के प्रयास खुद उन्हीं पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। जलूद में सोलर प्लांट को लेकर महापौर पर कमीशन का आरोप हो या विधानसभा क्षेत्र दो में विधायक निधि से सामुदायिक भवन के निर्माण का, या फिर बात हो नगर निगम के नए सभागृह के नामकरण की। आरोप तो जोर-शोर से लगाए गए, लेकिन नेता प्रतिपक्ष किसी भी मामले में अपनी बात साबित नहीं कर सके। अलबत्ता यह जरूर हुआ कि उन्हीं के दल के लोगों ने इन मामलों को लेकर उनसे दूरी बना ली। नेताजी को यह समझना होगा कि सिर्फ आरोप लगाने से कुछ नहीं होता, आरोप सिद्ध करने के लिए प्रमाणों की जरूरत पड़ती है। नेताजी मानें या न मानें, लेकिन इतना जरूर है कि अब कांग्रेसी ही कहने लगे हैं कि उन पर थोथा चना बाजे घना वाली कहावत सटीक बैठ रही है।इंदौर अभिभाषक संघ के वार्षिक चुनाव होते ही वे मुद्दे जिन्हें लेकर चुनाव लड़ा गया था, एक बार फिर डिब्बे में बंद हो गए। चुनाव हुए एक पखवाड़ा बीत चुका है, लेकिन न पार्किंग को लेकर बात हो रही है, न जिला न्यायालय की निर्माणाधीन इमारत में वकीलों के चेंबर को लेकर किसी तरह की कोई चर्चा। हालत यह है कि चुनाव को पीछे छोड़कर जिला न्यायालय में कामकाज एक बार फिर अपनी पुरानी लय पकड़ चुका है। इंदौर अभिभाषक संघ के पदाधिकारियों को न किसी तरह की तनख्वाह मिलती है, न मानदेय। बावजूद इसके पदाधिकारी बनने के लिए हर वर्ष सदस्यों के बीच रस्साकशी होती है। कुर्सी और वकालात के बीच का यह तालमेल कभी किसी को समझ में नहीं आया। चुनाव के बाद जिला न्यायालय की व्यवस्थाओं में कोई फर्क पड़ा हो या न पड़ा हो, इतना जरूर है कि इंटरनेट मीडिया पर सुबह-सुबह आने वाले गुड मार्निंग, गुड नाइट के मैसेज जरूर बंद हो गए हैं। बीजेपी की दूसरी सूची जारी होने के बाद पार्टी के कई नेताओं के मंसूबों पर पानी फिर गया। बदलाव की उम्मीद कर रहे इन नेताओं को विश्वास था कि इस बार किसी नए चेहरे को मौका मिलेगा, ऐसे में उनका नंबर लग सकेगा। इन नेताओं का शरीर भले ही इंदौर में था, लेकिन आत्मा दिल्ली में सत्ता के गलियारों में संभावनाएं तलाश रही थीं। किंतु शंकर लालवानी को दोबारा मौका देकर केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश के नेताओं को संदेश दे दिया कि प्रदेश की राजनीति और केंद्र की राजनीति में बहुत अंतर होता है। सूची जारी होने से पहले प्रत्याशी को लेकर नेताओं ने कयास भी खूब लगाए। टिकट को लेकर किसी ने कहा कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि यहां से किसी महिला को प्रत्याशी बनाया जाए, तो किसी ने केंद्रीय मंत्री को मैदान में उतारने का दावा कर दिया। अब जब प्रत्याशी घोषित हो गया है, तो नेताओं के सामने सिवाय समर्थन करने के कोई और चारा नहीं है।

#MP हायर एजुकेशन
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe