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झारखंड में पहली बार चिन्हित किए 17 एलीफैंट कॉरिडॉर रां

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झारखंड में पहली बार चिन्हित किए 17 एलीफैंट कॉरिडॉर रां

रांची.
झारखंड में वन्यजीव की बात हाथी-मानव संघर्ष की चिंता से जुड़ी है। पहली बार झारखंड में 17 जबकि देश में 150 एलिफेंट कॉरिडोर चिह्नित किए गए हैं। इससे पहले वन विभाग की ओर से एलिफेंट कॉरिडोर पर स्पष्ट बात नहीं की जाती थी। ऐसा राज्य या केंद्र की ओर से इस दिशा में आधिकारिक पहल नहीं होने के कारण होता रहा।
हाल में भारतीय वन्यजीव संस्थान ने देशभर में हाथियों की गतिविधियों के आधार पर मौका मुआयना करने के बाद एलिफेंट कॉरिडोर्स ऑफ इंडिया 2023 रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी है। चिह्नित कॉरिडोर की सूची राज्यों को उपलब्ध करा दी गई है। अब कॉरिडोर को अक्षुण्ण बनाने की दिशा में प्रयास हो सकेंगे। झारखंड के भीतर और दूसरों राज्यों से जुड़े 17 एलिफेंट कॉरिडोर मान्य किए गए हैं। अब ये गलियारे जहां-जहां खंडित हैं, उसे चिह्नित कर अक्षुण्ण किया जाएगा। कॉरिडोर में गैर मजरुआ भूमि, निजी भूमि पर भी हाथियों के मार्ग को अवरोध मुक्त बनाते हुए हाथियों के भोजन का पर्याप्त आधार उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि हाथियों का झुंड अपने मार्ग से भटके नहीं।
1. भागाबिल्ला-रत्नसाई कॉरिडोर चाईबासा वन प्रमंडल के हाटगम्हरिया रेंज से ओडिशा में रायरंगपुर जंगल तक। 19 किमी लंबा, दो-सात किमी चौड़ा। अक्तूबर फरवरी तक 26 हाथियों के झुंड का आवागमन।
2. जामपानी-भागाबिला कॉरिडोर नोआमुंडी रेंज से लेकर चाईबासा के हाटगम्हरिया रेंज होते हुए ओडिशा के क्योंझर वन प्रभाग तक। 120 किमी लंबा। दो से पांच किमी चौड़ा। अक्तूबर से फरवरी में 25 हाथियों का आवागमन।
3. सियालजोरा-धोबाधोबिन कॉरिडोर क्योंझर ओडिशा से नोआमुंडी के सईलजोरा की ओर चाईबासा वन प्रभाग में हाटगम्हरिया रेंज के धोबाधोबिन वन और ओडिशा के रायरंगपुर वन प्रभाग तक। 50 किमी लंबा। दो से छह किमी चौड़ा। अक्तूबर-फरवरी तक 33 हाथियों का आवागमन।
4. संगाजाता-हल्दीपोखर कॉरिडोर सरायकेला से चाईबासा में हल्दीपोखर रेंज तक। 96 किमी लंबा। दो से छह किमी चौड़ा। अक्तूबर से फरवरी के दौरान 74 हाथियों के झुंड का मार्ग।
5. लेपांग-डुमुरिया कॉरिडोर नोआमुंडी रेंज के लेपांग चाईबासा से ओडिशा के क्योंझर के लिए हाथी इस गलियारे का उपयोग करते हैं। 33 किमी लंबा। दो से सात किमी चौड़ा। अक्तूबर से फरवरी के दौरान 26 हाथियों के झुंड का मार्ग।
6. अंकुआ-अंबिया कॉरिडोर अंबिया-सारंडा वन को कोल्हान रेंज में डिंबुली रिजर्व फॉरेस्ट को जोड़ता है। 8 किमी लंबा। अगस्त से मार्च के दौरान 18 हाथियों के झुंड का मार्ग।
7. रायबेरा-पुलबाबुरू कॉरिडोर कोल्हान के रायबेरा से पोराहाट के पुलबबुरु, डेरवान, अनंनदपुर व अंबिया के बीच। 8.5 किमी लंबा। अगस्त से मार्च तक 4 हाथियों का आवागमन।
8. डालापानी-सुकलारा कॉरिडोर दलमा अभयारण्य को जमशेदपुर के दलापानी व बंगाल के कांकराझोर रिजर्व से जोड़ता है। 2.10 किमी लंबा। 28 हाथियों का मार्ग।
9. दलमा-चांडिल कॉरिडोर चांडिल, दलमा वन्यजीव पश्चिम रेंज को चांडिल, सरायकेला वन प्रभाग को जोड़ता है। 5 किमी लंबा। 4 से 5 हाथियों का झुंड आवागमन बढ़ा है।
10. दलापानी-काकराझोर अंतरराज्यीय कॉरिडोर जमशेदपुर के डालापानी रिजर्व फॉरेस्ट को पश्चिम में काकराझोर और मिदनापुर को जोड़ता है। लंबाई 25 किमी, चौड़ाई 2.5 किमी। 45 हाथियों का झुंड आवागमन करता है।
11. डुमरिया-नयाग्राम कॉरिडोर मुसाबनी रेंज के डुमरिया रिजर्व फॉरेस्ट को चाकुलिया रेंज के नयाग्राम रिजर्व फॉरेस्ट जमशेदपुर को जोड़ता है। लंबाई 6.5 किमी, चौड़ाई एक किमी। 70 से 80 हाथियों का झुंड आवागमन करता है।
12. सिल्ली-अनगड़ा रांची ईस्ट फॉरेस्ट रेंज के महिलौंग से खूंटी वन प्रमंडल के तमाड़ रेंज तक। लंबाई 25 किमी, चौड़ाई शून्य से तीन किमी। 24 हाथियों के झुंड का मार्ग।
13. भरनो-बेरो-कारा रांची ईस्ट फॉरेस्ट रेंज के महिलौंग से खूंटी के तमाड़ तक कनेक्टिविटी है। लंबाई 35 किमी, चौड़ाई शून्य से तीन किमी। 16 हाथियों के झुंड का मार्ग।
14. दलमा-आसनबनी दलमा वाइल्डलाइफ वेस्ट रेंज, चांडिल से टेरिटोरियल रेंज चांडिल के बीच है। लंबाई 1 किमी, 8 से 10 हाथियों के झुंड का मार्ग।
15. दलमा-रुगाई दलमा वाइल्डलाइफ वेस्ट रेंज, चांडिल से टेरिटोरियल रेंज चांडिल के बीच। लंबाई 1.5 किमी, एक किमी चौड़ा। 8 से 10 हाथियों के झुंड का नियमित मार्ग।
16. अंजादबेरा-बिचाबुरु कॉरिडोर अंजादबेरा संरक्षित वन के साथ बिचाबुरू संरक्षित वन कोल्हान और सारंडा वन क्षेत्रों की ओर जाता है। लंबाई 13 किमी, दो किमी चौड़ा। हाथियों की संख्या ज्ञात नहीं।
17. डुमरिया-कुंडलुका और मुरकंजिया कॉरिडोर धालभूम में राखामाइंस रेंज के साथ मोसाबनी रेंज की कनेक्टिविटी। लंबाई 8 किमी, दो किमी चौड़ा। हाथियों की संख्या ज्ञात नहीं।

राज्य में 679 हाथी
2017 में हाथियों की गणना की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में 679 हाथी हैं। देश में हाथियों की गणना पांच वर्षों में होती है। यह 2022 में होनी थी, लेकिन नहीं हुई।

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